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Showing posts from May, 2008
फिर उठा परदा फिर वही रात, वही बारिश वही मिटटी की महक और वही चमकती बिजलियों से रोशन आसमान न जाने क्यों लगता है यह मनज़र नया सा हर बार न तारों की चमक, न चाँद की रौशनी फिर भी न जाने क्यों खूबसूरत है ये बारिश का समा न जाने क्यों ये बूँदें किलकारियाँ मारते बच्चों को हसा देती है हर बार न जाने क्यों भीगे हुए कपडों में लहलहाती है वोही महक हर बार लेकर एक नया रंग, एक नया अंदाज़ न जाने क्यों बारिश की इस चादर को हिलाती ये मदमस्त हवा बयान कर जाती है एक नया सुर, एक नयी ज़बान न जाने क्यों रात की वो आगोश बदल जाती है न जाने क्यों टिड्डों की किरकिट बंद और मेंद्कों की टर्र टर्र शुरू हो जाती है न जाने क्यों
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बीता हुआ कल तो केवल एक स्वप्न था आने वाला कल तो केवल मिथ्या होगी जो भी है, केवल इस ही क्षण में है इसी में राम का बाण है इसी में कृष्ण की माया इसी में है शक्ति का निवास इसी पर है शिव का साया यही काल है, यही महाकाल है इसी के द्वारा बना हुआ सृष्टि का यह मायाजाल है यही विजय, यही पराजय यही जीवन का संघर्ष है इसी में प्राण, इसी में मृत्यु इसी में बसा जीवन का मूल सत्य है इसी पल में होगी किसी के प्राणों की आहुति स्वाहा इसी पल में कोई हसेगा लगाकर ठहाका बस, सम्पूर्णता है इसी एक क्षण में साकार, निराकार, विकार, सभी कुछ यही है मनुष्य, दानव, ईश्वर, सभी यही है इसीलिए, हे मनुष्य, तेरे जीवन का मूल सत्य है यही सत्य, निष्ठा और बलपूर्वक व्यतीत कर यह क्षण जो हाथों में है तेरे अभी

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Life can be so complicated; no one can even try to fathom what it stores in its depths. The sands of time keep flowing down the hourglass’ neck, and yet we all try to hang on to each grain of it, as if that grain itself is going to take us into the eternal finality of the moment that was. But is there anything that ever was, or will be? There is only that which is manifest in front of us, that which we refer to us as our present. This is the moment; this holds the key to everything that we comprehend of time in typically human ways-past, present ad the future, or whatever you wish to call it. Let your action be guided by what the soul desires, not by what the possible outcome is going to be. Be yourself; don’t think yourself out, or pretend to be ‘normal’-go natural boss. Even if there could be a predictor that could gives 99.9% accuracy, never listen to it-there will still always exist that 0.1% possibility of the prediction to go wrong. I read tarot, and yet tell all the questioners ...