You only realize the gravity of any situation only when it stares right in your face. That is exactly how I have been feeling today for the whole day. I had been reading a lot about the agrarian crisis in the state of Andhra Pradesh when I was living in Delhi, but the true picture of the severity of the crisis has only now begun to sink in. each day, hundreds of families enter Hyderabad, coming from various parts of the state, hoping to create a better life over the ashes of their previous one, which was sacrificed in the sweltering heat ofthe sun under which they worked on their fields only to get a cropper out of them. Its so depressing to see these families squatting on the pavements, on which they took refuge so that the could clear the debts that they had incurred, and free the piece of land that they loved in spite of the hostility it offered to them. I wish I could do something about it, but I feel so helpless about it.
मुबारक मंडी की कहानी, जम्मू प्रति सौतेले व्यवहार का प्रतीक
2019 का वर्ष भारत किए एकता और अखंडता के इतिहास में एक विशेष महत्त्व रखता है। धरा 370 को संशोधित कर एवं जम्मू - कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित राज्यों का दर्जा देकर केंद्र सरकार ने इतिहास की एक बहुत बड़ी गलती को सुधारने की दिशा में पहला ठोस प्रयास किया। दशकों के अंधकार के पश्चात जब एक आशा की किरण दिखती है, तो संभवतः प्रताड़ित जनमानस के मन में असंख्य भाव जागते हैं, अपेक्षाएं जागती हैं। ऐसा ही कुछ जम्मू के लोगों के साथ भी हुआ, जो अंधकारमय तूफ़ान में आशा की किरण की प्रतीक्षा में खड़े रहे। जम्मू प्रजा परिषद् का आंदोलन हो या अमरनाथ संघर्ष समिति, हर अवसर पर जम्मू के लोगों ने "भारत माता की जय!" का उद्घोष करा और भारत की अखंडता के लिए बलिदान दिए। अलगाववादी सोच वाले चरमपंथी नेताओं के दबदबे के विरूद्ध सदैव खड़े रहे, और विचारधाराओं के टकराव में बराबर की टक्कर देते रहे। कितने कुठाराघात के बावजूद जम्मू के जनमानस ने भारत, उसके संविधान और उसके न्याय तंत्र में अपना अटूट विश्वास नहीं छोड़ा - तब भी जब उन्हें कश्मीर घाटी के अलगाववादी नेताओं के साथ जोड़कर देखा गया। किन्तु ३७० के संशोधन पश्चात् जम्मू
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