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Showing posts from September, 2013

Let's Make a Riot

Let's make a riot. It's the easiest political formula to follow that is stored up in the arsenal of Indian politicians. No deep thinking to state ideology, no difficult problems to solve to win voters, not even worry about the economy. It's the easiest one of course after the numero uno - we are a party of the poor. After all, everyone in our country wants to be declared poor - just sample the kind of people who carry ration cards to see just who really benefits from schemes for the poor, and you will see. The riot formula is easy - throw a dead pig or a dead cow, deface religious structures, harass women and raise the slogan of religion, caste or ethnicity, or simply throw up anti-India rhetoric. Put up some fake videos of co-religionists being persecuted in some obscure part of the world and run riot in 'revenge'. If that does not work, stab a worker of some political parties or religious organizations to inflame passions.  If that too fails, deliver hate ...

Random Thoughts

आज धूप निकले हुए दो  दिन हो गए हैं. अच्छा लगता है , क्योंकि बाहर की हरियाली पूरी तरह निखर के प्रस्तुत होती है। घर पर भी हमें ऐसी ही हरियाली देखने को मिलती थी घर से बहार की ओर देखने पर। घर की तरह ही यहाँ भी मैं पश्चिम की ओर इन हरे भरे वृक्षों को देखता रहता हूँ, लोगों की राह उस सड़क पर ताकता रहता हूँ जो उन् वृक्षों में कहीं ओझल हो गयी है, छुप गयी है। कल शाम हम समुद्र के किनारे टहलते हुए पहुंचे थे. कल शाम ढलते सूरज के आँचल में हमने चंद लोगों को मछली पकड़ने की ताक में पाया था। एक महिला ने तो शायद मछली पकड़ भी ली थी। हम सब राहगीर खड़े हो ये देख रहे थे के मछली निकाल पाने में वो कामयाब होगी या नहीं। काँटा झुकता रहा ; शायद मछली लड़ रही थी. एकाएक कोई आदमी आगे आया और उसकी मदद करने लगा। उससे लगा के शायद उसके हस्तक्षेप से मछली पकड़ में आ जाएगी। परन्तु मछली शक्तिशाली निकली; वह काँटा तोड़ कर भाग निकली। हम सब चुपचाप इस खेल को देख रहे थे, उम्मीद में थे के शायद उन्हे भी मछली देखने को मिलेगी। तमाशा ख़त्म हुआ, और हम सब राहगीर अपनी अपनी राह पकड़ लौट चले। राह में व...