Khaadi Ki Poornima

खाड़ी कि पूर्णिमा आज नयनों से ओझल है
यूँ तो सदैव ही आकर देख जाती थी मुझे
पर आज वो अदृश्य है

पूर्णिमा मेघ का घूंघट
आज जाने क्यों पहन बैठी है
कौन प्रीतम है जिससे वो
यूं स्वयं को छुपाये  बैठी है

सागर का जल भी आज
काली चादर ओढ़े सो गया है
ये कैसी विडम्बना है कवी की
ये कौन सी अबूझ  पहेली है

अंधकार में देखूं तो
सब कुछ भावहीन, रंगहीन है
स्वप्न भाँति यह मरीचिका सा पल
स्मृति में क्यों अंकुरित है

खाड़ी कि पूर्णिमा आज नयनों से ओझल है

Comments

Thank you for beingg you

Popular posts from this blog

मुबारक मंडी की कहानी, जम्मू प्रति सौतेले व्यवहार का प्रतीक

The Kidnapping of Nahida Imtiaz - The incident that caused a spike in terrorist kidnappings in Kashmir

Of Free Televisions and Outcomes - How We Miss the Woods for the Trees