एक शमा कहीं जली है
एक शमा कही जली है हुस्न-ए-मग़रिब पे एक दाग़ आज लगा है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी इन्सां को आज फ़िर से कोई बुत बना गया है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी नुजूम के तारे कोई ग़र्दिश में लपेट गया है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी वक्त की भट्टी में उन्हें तपिश में छोड़ गया है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी चिलचिलाती धुप में यूँ नंगे पाँव चलता देख रहा है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी ख़ाक छानते हुए कोई ग़ुरबत में रो रहा है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी काँटों की सेज पर बैठा कोई हमको छोड़ गया है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी नाकामियों का सेहरा कोई सिरे बाँध गया है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी इंसानियत का जनाज़ा आज फ़िर से उठ रह है एक शमा कहीं जली है एक आतिश कहीं लगी थी यादों की शमाएं हमने आतिश-ए-हस्सास से जलाई थी उम्मीदों के दरीचे हमने इन्ही शमाओं से जलाये थे पर ये ज़मीन में कुछ बात है के अनकहे अनसुने किस्सों से ये ज़मीं आज भी रोशन है खुश्वार है, उम्मीद से है आज फ़िर एक शमा...