वीर-रस

चलें हैं फिर आज हम तो
पुनः सत्य के शूलों पे
उतरें हैं फिर आज हम तो
पुनः अग्नि के कुंडों में
अवगत थे न हम कभी
जीवन की किसी सरलता से
मरुस्थल में पुष्प को खिलाना
वीरों से सीखा है हमने

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