मृत्यु तू आरम्भ है
मृत्यु तू आरम्भ है
एक अनभिज्ञ आभास का
अभय हो अब आलिंगन कर
करें त्याग हम श्वास का
जो ज्ञात न हो हमें
क्यों व्यर्थ चिंतन उसपर करें
अंतिम क्षण तो पूर्वविधित है
हर मनुष्य के प्राण का
भ्रांतियाँ घेरें अनेक हैं
इस जीवन के दर्पण पर
मात्र एक सत्य कर स्वीकार
करें आह्वान धर्मराज का
मृत्यु तू आरम्भ है
एक अनभिज्ञ आभास का
अभय हो अब आलिंगन कर
करें त्याग हम श्वास का
एक अनभिज्ञ आभास का
अभय हो अब आलिंगन कर
करें त्याग हम श्वास का
जो ज्ञात न हो हमें
क्यों व्यर्थ चिंतन उसपर करें
अंतिम क्षण तो पूर्वविधित है
हर मनुष्य के प्राण का
भ्रांतियाँ घेरें अनेक हैं
इस जीवन के दर्पण पर
मात्र एक सत्य कर स्वीकार
करें आह्वान धर्मराज का
मृत्यु तू आरम्भ है
एक अनभिज्ञ आभास का
अभय हो अब आलिंगन कर
करें त्याग हम श्वास का
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