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तनहाई

एक ही बात थी जो तुमसे कहना चाहते थे दिल की हर तह में बस तुम्हें ही रखना चाहते थे मगर ये मुमकिन न कर सके सच्चाई के पत्थर ने ख़्वाहिशों के आईने तोड़े थे उनके बेहिसाब टुकड़े किये थे कामयाबी की उम्मीदों के कुछ बुक्कल भी सिलवाए थे वो वक़्त की उभरी कीलों में उलझ कर सब उधड़ गए थे वो रात के चाँद को देख के कुछ सपनों के फूल महकाए थे बेमौसम हालात की आँधी ने गुलशन ही उखाड़ फेंके थे बस अब मायूँसी रह गयी है हाथ जिसे पूछने कोई न आता है वो ग़म की काली गहरी रात हर पल एहसास कराता है अब कुछ भी नहीं है मेरे हाथ जो था हालात उसे ले गए थे दो वक़्त की साँसे छोड़ पीछे मुझे तनहा छोड़ कहीं खो गए थे