तिरस्कार की माला
प्रत्येक पल में तिरस्कार छिपा है
कुछ भाग्यशाली ही इसके भोगी होते है
जीवन यातनाओं के माला पिरोता है
जो इनके कण्ठ की शोभा बनते हैं
मैं भी संभवतः इसी श्रेणी का हूँ
और इस जीवन सत्य से परिचित हूँ
ये वेदनाओं के आभूषण मेरे लिए बना
काल के द्वारपाल मुझे आकर्षित करते हैं
बस टकटकी बाँध बैठा हूँ किवाड़ पे
सोचता हूँ, जब स्थितियाँ वश में होती हैं
उचित समय पर कर सबसे विछोड़ा
हम भी तेरे कटरे की ओर चल देते हैं
हाँ, ये कटरा इस आयाम से परे है
यह बात सोचता हूँ सब को बता चलते हैं
के कल, गलती से किसी विचार में जो मैं दिखूँ
तो जान लेना, के हम एक भ्रांति बन रह गए हैं
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