Raat ki Razai
ऐ माई आज मेरे लिए एक रज़ाई तुम बुन देना सौ ग्राम रुई डालना सपनों की सौ ग्राम उस में अंगड़ाई भरना चंद धागे भी बुनना तुम प्रेम की मीठी यादों के ताना बाना जो उस में मिली हो तारों की झलकें चंद दुखड़े भी डालना तुम और रंगना मेरे आसुंओ से कोनों की टाँकें जो लगाओ तो पिरोना सुआ मेरे केसुओं से ये आने वाली रुत बड़ी लम्बी रात लाएगा अतीत के पन्ने फाड़ कर ये मुझे सुनाने आएगा वो किस्से सुन मैं सो जाऊँ बस यही आस उठे मन में तन ढक जग से मैं छुप जाऊँ जब रात पहर मुझ से गुज़रे ऐ माई आज मेरे लिए एक रज़ाई तुम बुन देना सौ ग्राम रुई डालना सपनों की सौ ग्राम उस में अंगड़ाई भरना