आज सिंह गुर्राया है
आज सिंह गुर्राया है वन में गर्जन छाया है छुपे श्वान सब अपने बिल में एक नवयुग उदय कराया है कर प्रहार, हुए अनेक वार चोटिल हुआ है बारम्बार पर अवसरवाद कर तुमने केसरी को ललकारा है आज सिंह जो दहाड़ा है वन में गर्जन छाया है करो प्रत्यक्ष पर पर्दा किन्तु दर्पण आज दिख आया है क्षीण भाव का परिचय बनकर अपना स्तर तुमने गिराया है फेर पंजा वनराज ने किन्तु क्षद्मों को धूल चटाया है आज सिंह गुर्राया है वन में गर्जन छाया है छुपे श्वान सब अपने बिल में एक नवयुग उदय कराया है