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आज सिंह गुर्राया है

आज सिंह गुर्राया है वन में गर्जन छाया है छुपे श्वान सब अपने बिल में एक नवयुग उदय कराया है कर प्रहार, हुए अनेक वार चोटिल हुआ है बारम्बार पर अवसरवाद कर तुमने केसरी को ललकारा है आज सिंह जो दहाड़ा है वन में गर्जन छाया है करो प्रत्यक्ष पर पर्दा किन्तु दर्पण आज दिख आया है क्षीण भाव का परिचय बनकर अपना स्तर तुमने गिराया है फेर पंजा वनराज ने किन्तु क्षद्मों को धूल चटाया है आज सिंह गुर्राया है वन में गर्जन छाया है छुपे श्वान सब अपने बिल में एक नवयुग उदय कराया है

मृत्यु तू आरम्भ है

मृत्यु तू आरम्भ है एक अनभिज्ञ आभास का अभय हो अब आलिंगन कर करें त्याग हम श्वास का जो ज्ञात न हो हमें क्यों व्यर्थ चिंतन उसपर करें अंतिम क्षण तो पूर्वविधित है हर मनुष्य के प्राण का भ्रांतियाँ घेरें अनेक हैं इस जीवन के दर्पण पर मात्र एक सत्य कर स्वीकार करें आह्वान धर्मराज का मृत्यु तू आरम्भ है एक अनभिज्ञ आभास का अभय हो अब आलिंगन कर करें त्याग हम श्वास का

वीर-रस

चलें हैं फिर आज हम तो पुनः सत्य के शूलों पे उतरें हैं फिर आज हम तो पुनः अग्नि के कुंडों में अवगत थे न हम कभी जीवन की किसी सरलता से मरुस्थल में पुष्प को खिलाना वीरों से सीखा है हमने

प्रेरनागान

वीर निराश तू कभी न होना युद्ध से विचलित कभी न होना अवगत हो अपने साहस से अंतिम समय बंधे ढांढस से अन्त निकट अभी नहीं तुम्हारा उगा सूरज, हुआ उजियारा जलती चिता में बुझते प्राण काल आहुति मांगे बलिदान किंकर्तव्यविमूढ़ न होना हँसमुख होकर आगे बढ़ना जीवन नाव कर तटस्थ तुम पृथ्वी पे फूलों सा सजना घाव अनेक, पर मृत्यु एक स्मरण रहे यह क्षण प्रत्येक वीरों को शोभा नहीं देता रणभूमि की वेला छोड़ना रथ सवार कर धर्मराज का अंतिम चरण में भागी होना वीर निराश तू कभी न होना युद्ध से विचलित कभी न होना

नव इतिहास को फिर दोहराएं

थका तन, निराश मन अश्रु और लहु के कण अनगिनत बार हमने बहाये यत्नाग्नि में हारे जाएँ स्वप्न असंख्य टूटे हर बारी चिता बुझी छोड़ चिंगारी रात्रि के अँधेरे घेरें करें श्वान मृत्यु के फेरे पथ प्रतिष्ठित मगर हैं त्यागे पग पग कर बढ़ते हम आगे आशा के सूरज की ओर एक पग हम अब और बढ़ाएं भय को अट्टाहास मान हम व्यर्थ की चिंता दूर भगाएं सिंह की भाँति जीवन को अपना उपवन हम पुनः बनाएं विजय पराजय संज्ञान करके नव इतिहास को फिर दोहराएं

Delhi Elections and the Silly 'Power Games'

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Among utter mudslinging, maligning and language spins, elections to the legislative assembly of the state of Delhi are going to happen on February 7, 2015. It is impossible to believe that to elect members of the New Delhi Municipal Corporation (which includes the Chief Minister) we are seeing right now competitive populism at its worst taking place, with no estimates of money being given from anyone. One key area that we need to examine is the electricty scenario of Delhi, whereby everyone wants to power their autorickshaws to the chair of Chief Minister of the National Capital Territory of Delhi. Aam Aadmi Party (AAP) had ridden the first bid at power on the protest of power tariffs in Delhi. Fact is that the power scenario of Delhi is a mess to begin with, encouraged by the political opportunism of hooligans of the likes of AAP who believe that freeloading is the way to go. Seeing this, both the Indian National Congress (INC) and Bharatiya Janata Party (BJP) have also been m...

The Iranian Blind Spot of Intellectuals

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The death of the Saudi King Abdullah has generated a lot of debate heat across the world. In love, as in death, the Kings have always been a point of much debate for a large number of those vying to be called intellectuals who decry Saudi Arabia's human rights violations. We are being three days enlightened over Rauf Badawi's shocking sentence, whereby a ten year prison term is to be supplemented with fifty lashes per week every Friday after evening prayers in public. Stories of daughters being imprisoned or of terrorists being funded in some way or the other keep surfacing. Much ridicule is hurled at the kingdom for its medieval thinking about women rights and the rights of modern day slaves. The problem with much of this much justified criticism is just one. What is sauce for the goose is just not sauce enough for the gander in the eyes of liberal intellectualism. 'Intellectuals' often talk glowingly about Iran's defiance of the West, particularly the ho...