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Nitish Kumar - Thy Name is Blind Arrogance

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The Original Ghar Wapasi of Nitish Kumar (Courtesy BBC News Hindi) In the Mahabharata, Kurukshetra Parva brings to highlight the aggrieved arrogance of Dhritrashtra. He let the war happen not because he wanted his son to be king; rather, it was his love of power and his perceived right to be king that was the dharmaprasna that needed resolution. Blindness was not just physical in his case. One must also realize that Dhritrashtra's blindness was not just physical but symbolic too - he became blind to the decay of Hastinapura by becoming oblivious to the affairs of the state and instead indulging in holding on to power at any cost. The reason why I draw the analogy of the Mahabharata is because of recent happenings in Bihar. In a spur of the moment, Laloo Prasad Yadav, that great scion of politics, compared Narendra Modi to Kamsa , a character overlapping between the Mahabharata and the Srimad Bhagvatam. In the midst of it all, Nitish Kumar started playing his own mindgames wit...

फ़सल

बोलो, किसने करी आज पंजाब की ये फ़सल ख़राब? मिलता नहीं आज मुझे कहीं से भी कोई जवाब डाल किसने कालिख़ आज ये मिट्टी करी यूं अज़ाब किसने ज़हर के धुएं से आज धुंधलाया पूरा दोआब? ये कैसी खाद लगा गए है लहलहाते खेतों में के रोती रहीं है अगलों की मौत पे सैंकड़ों माएँ आज ये कैसी सांसें ले रही है आज की गुमशुदा पीढ़ी सरसों ने भी खिलखिलाने से किया आज यहाँ है इनकार? ये दरिया में आज घोला किसने है ऐसा जानलेवा सा अज़ाब के सुबह सवेरे आज लेता हर कोई घूँट अंग्रेजी शराब? पनीर दूध दही मक्खन की रोटियाँ हुईं कहीं ग़ुम बस चाहिए आज तीनों वक़्त वो मीठे ज़हर की एक ख़ुराक बाजरे की इन सिट्टों को आज कर गया है कौन राख़? ये काँटों की सेज कैसे बिन जाने बिछ गयी आज? किसकी बुरी नज़र लग गयी पंजाब को सूख के मिट्टी हो गए उम्मीदें बेहिसाब बोलो, किसने करी आज पंजाब की ये फ़सल ख़राब? मिलता नहीं आज मुझे कहीं से भी कोई जवाब

The Facetiousness of Arvind Kejriwal

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I am Big Brother - Arvind Kejriwal in an Accusatory Moment at the Auto Rally in Delhi (courtesy Financial Express) For all those people who do not quite grasp logic on the subject of Arvind Kejriwal, please close this webpage right now. This is not meant for you, as stinging arrows of criticism are something that thin hides cannot protect. Or you may wish to continue, provided you are no different from a pangolin. The last ten days have been spent in an unnecessary wrangle, where the government of the National Capital Territory of Delhi have shifted from purging people from the Party to finding newer more exciting ways to stay relevant in the media. A ten day temporary posting has been selected for the battleground, and swords have been drawn against constitutional bodies, using such aide-de-camps as five star legal activists to prove that Mr Arvind Kejriwal is being prevented from ushering in utopia into Delhi. Of course, the truth is far removed from what Mr Kejriwal and his men...

Sheher - Ek Nazar

कभी जागते, तो कभी सोते देखा है इस शहर को हमने ग़ुम होते देखा है   ईमारतों के पीछे छुपे हुए वो बाग़ हवेलियों महलों के टूटते हुए टाट अजी दो मंज़िले को ग्यारह मंज़िले से उलझते देखा है इस शहर को हमने ग़ुम होते देखा है मोटर और टांगों की खीँचातान भी है शोर-ओ-ग़ुल में सुकूँ भी कहीं है नवाबी शौकियों को भी ख़ार खाते  देखा है इस शहर को हमने ग़ुम होते देखा है सच का जामा ओढ़े झूठ को बेपरवाह गश्त लगाते देखा है तहज़ीब के दायरों में लिपटी जिस्म की नीलामी को देखा है रात के सन्नाटों को दिन में हमने ग़ुम होते हुए देखा है चाँद की चौदहवीं को कुछ यूं अमावस से गले मिलते देखा है बस, चंद लम्हात में हमने कई ज़िन्दगियाँ गुज़रते देखा है अजी सभी कुछ यहां होते हुए देखा है इस शहर को हमने ग़ुम होते देखा है  

कल रात यहाँ चाँद आया था

कल रात यहाँ चाँद आया था कुछ ख़्वाबों से भरके झोली गोया ज़मीन पे उतर आया था कल रात यहाँ चाँद आया था यहीं राह पर उस मुसाफ़िर को हमने गश्त लगाते देखा था जाने किस कूचे की फ़िराक़ में यूँ रात की गहराई में वो अचानक चला आया था कल रात यहाँ चाँद आया था चंद तारों को काली बुक्कल में उसने नगीनों से जड़ रखे थे उस बुक्कल की टाट खड़ी कर झोली खोल उसने अपनी ख़्वाबों का बाज़ार लगाया था कल रात यहाँ चाँद आया था कुछ निराश, कुछ हताश और कुछ सुस्तायी आँखें उससे नींद उधार ले गये थे कुछ यादों ने भी उसी टाट में अपना ठिकाना बनाया था कल रात यहाँ चाँद आया था लम्हों की गुज़ारिश थी की कुछ देर और कारोबार चले पर चाँद ख़ामोश इतराया था और बिन कोई निशां छोड़ सेहेर की अंजान राह पे उसे हमने ग़ुम होता पाया था कल रात यहाँ चाँद आया था कुछ ख़्वाबों से भरके झोली गोया ज़मीन पे उतर आया था कल रात यहाँ चाँद आया था

The Whole Language Debate is Redundant

I have been reading for ages about how English is killing off other languages in India, and how Hindi hegemony is being used to bully non-Hindi speakers. To me, these myths have no standing in today's India. Let me illustrate my own experiences to explain how. I essentially belong to a family that has Pahari culture. Our ancestors hail from a region called Kangra. However, Kangra has for the longest time been a part of Punjab, and so both our local Pahari dialects and Punjabi have a lot of cultural and linguistic affinity. Since the Pahari culture extends all the way up to Jammu and Bhaderwah, we can even communicate, and have familial links all the way, with Dogri and Bhaderwahi people. My father speaks Punjabi with his Dogri cousins, who respond in Dogri, and laugh at the same jokes and cry over the same sad stories. I grew up studying with English being the medium of instruction for all my schooling and English is what I say my first language of thought. I had been a long s...

आज सिंह गुर्राया है

आज सिंह गुर्राया है वन में गर्जन छाया है छुपे श्वान सब अपने बिल में एक नवयुग उदय कराया है कर प्रहार, हुए अनेक वार चोटिल हुआ है बारम्बार पर अवसरवाद कर तुमने केसरी को ललकारा है आज सिंह जो दहाड़ा है वन में गर्जन छाया है करो प्रत्यक्ष पर पर्दा किन्तु दर्पण आज दिख आया है क्षीण भाव का परिचय बनकर अपना स्तर तुमने गिराया है फेर पंजा वनराज ने किन्तु क्षद्मों को धूल चटाया है आज सिंह गुर्राया है वन में गर्जन छाया है छुपे श्वान सब अपने बिल में एक नवयुग उदय कराया है