होली
मोहे नैनन प्यास बुझायो रे तू बरसाना रंग आयो रे तेरे श्याम रंग से धुला आकास मुझे हरि रंग नहलायो रे तेरे प्रेम की आस में भटक रही बन कान्हा पग पग बिलक रही तू मिलन भक्त से आयो रे मुझे हरि रंग नहलायो रे हैं पीत वस्त्र और मोर मुकुट नथ में कुण्डल तू डारियो रे कर में कंकण सोने के झलक कस्तूरी तिलक तू धारयो रे कुण्डल मोती और केश घने अंखियन जोति और ब्रह्मतेज बेणु तू मुख से लगायो रे मुझे हरि रंग नहलायो रे बाजे ताशे और ढोल मृदंग पखवाज की लय, मचे हुड़दंग टोली बृंदावनी आयो रे मुझे हरि रंग नहलायो रे है अमिट प्रीत, अनंत प्रसंग राधा-रमणा हो हरि का रंग मुझ गोपी को तू सतायो रे मुझे हरि रंग नहलायो रे बरसे हैं पुष्प के अनंत रंग स्वर्णिम श्याम, जमुना तरंग धीमी गति बह वो देख प्रसंग कजरी नैना में समायो रे गोकुल संग न रही अब सुध बुद्ग और रास रचाय वो मंत्रमुग्ध जन्मों की प्यास बुझायो रे मुझे हरि रंग नहलायो रे