खैट - एक प्रसंग
"भुला! ये खैट पर्वत किस ओर पड़ेगा?" उस लड़के ने ऐसे देखा, मानो साँप सूँघ गया। "मुझे नहीं पता," इतना कहकर वो एकदम तेज़ी से चलने लगा, और क्षण भर में भाग कर अदृश्य सा हो गया। दीपक और उसका मित्र वरुण दोनो ने यह निर्णय किया था के वो अंधविश्वास के विरुद्ध मुहिम छेड़ेंगे। दिल्ली में विज्ञान विषय पढ़ने के बाद उनका दैवीय शक्ति, भूत, अभिचार, इन सब को संदेह से देखना आम बात थी। फिर क्या था -, सत्यशोधन समाज की सदस्यता लेकर उन्होंने जगह जगह जाकर अंधविश्वास के विरुद्ध जागरूकता फैलाने का काम शुरू किया। अभी भी कॉलेज में ही थे, लेकिन शेष समय में जगह जगह जाकर समाज का काम करना उनकी पहचान बन गया था। "कमाल है," वरुण ने एक सिगरेट निकाली और लाइटर से सुलगा कर एक कश भरा। "तीसरा व्यक्ति है, जो बिन बताए चला गया," यह कहकर वरुण ने सिगरेट को दीपक के साथ साझा किया। दीपक ने उस सिगरेट से एक कश भरा, और लौटा दिया। टिहरी के खैट की यह यात्रा बहुत ही कठिन होती जा रही थी। यातायात की समस्या, फिर सड़क की दुर्घटनाएं, ऊपर से लोगों का असहयोग। सब कुछ ही देख लिया था, लेकिन चलो, ऐसा ही होता है...